*वर्ष 2020 जो की कोरोना वर्ष बन गया है इस वर्ष सभी जगह अप्रैल माह में संपूर्ण लॉकडाउन किया गया था |अथवा इस वक्त भी सावधानी बरतते हुए कई जगह लॉकडाउन अभी भी लगा हुआ है | क्योंकि कोरोना से सावधानी सबसे अहम है ।
यही अगर बात करे केदारनाथ की -------
केदारनाथ जो की पंच केदारो में से एक है,
केदारनाथ को लेकर लोगों की अलग-अलग मान्यता
1. यह भी कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण पांडवों के समय हुआ था है केदारनाथ मंदिर को लेकर कहा जाता है कि महाभारत का युद्ध को जीतने के बाद पांडवों को परिवार हत्या का श्राप मिला था जिसकी वजह से पांडव उस पाप से मुक्त होने के लिए शिव भगवान शिव का आशीर्वाद पाने के लिए भगवान शिव को ढूंढने के लिए निकल पड़े भगवान शिव का दर्शन करने के लिए पांडव काशी गए किंतु वहां उन्हें शक नहीं मिले पांडवों को भगवान शिव को ढूंढते हुए केदारनाथ जा पहुंचे किंतु भगवान शिव पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे पर के पांडव श्रद्धा के पक्के थे पांडवों ने भगवान शिव को जो कि बैलों के झुंड में बैलों का रूप लिए हुए छुपे हुए थे पांडवों ने उन्हें ढूंढ लिया तभी भीम ने अपना विशालतम रूप धारण किया और दोनों पहाड़ों पर अपने पैर रख दिए यह सब देखकर सभी गाय बैल जमीन मे समा गये किन्तु भगवान शिव जमीन के नीचे नही समाय भीम ने अपने बल से एक बैल को पकड़ा लेकिन जो की भगवान शिव थे फिर धरती में समाने लगे तब बैल की पीठ का भाग पकड़ लिया भगवान शंकर भक्ति और सङ्कल्प और श्रधा से बहुत प्रसन्न हुए है उन्होने उसी समय दर्शन देकर पांडवों को पाप से मुक्त कर दिया और उसी समय से भगवान शंकर पांडवों की भक्ति, श्रद्धा और संकल्प से बहुत प्रसन्न हुए है उन्होंने उसी समय दर्शन देकर पांडवो को पाप से मुक्त किया उसी समय से भगवान शिव बैल की आकृति में श्री केदारनाथ में पहुंच जाते है।
2. एक प्रचलित मान्यता है अनुसार मंदिर के स्थापना जगतगुरू आदि शंकराचार्य ने आठवीं शताब्दी में करी थी l मंदिर के पिछले भाग में जगतगुरु आदि शंकराचार्य की समाधि भी स्थित है ।
3. ऐसा भी मन जाता है भगवान शिव केदार के ऊपर का भाग काठमांडू में प्रकट हुआ अब वहां पर पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है शिव की भुजाएं तुंगनाथ में मुख रुद्रनाथ में नाभि मधेश्वरण और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुई इसीलिए इन चार स्थानों से श्री केदारनाथ को पंच केदार कहा जाता है केदारनाथ मंदिर मंदिर के कपाट भैया दूज के दिन सुबह सभी विधि विधान के साथ ही कपाट बंद कर दिए जाते हैं ।
प्रमुख घटना :
वर्ष 2013 में उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में अचानक बाढ़ आ गई थी, जिस वजह से भूस्खलन होने लगा जिसे सबसे ज्यादा अधिक प्रभावित केदारनाथ धाम हुआ। यह आपदा इतनी भयंकर थी कि इसके आसपास के सभी इलाके क्षतिग्रत हो गये लेकिन केदारनाथ मंदिर सुरक्षित और उसी भव्यता से अपनी स्थान पर स्थापित रहा । आज भी लोग इसे एक चमत्कार से कम नहीं मानते, बाढ़ और भूस्खलन के बाद बड़ी-बड़ी चट्टानें मंदिर के पास आकर रुक गई तथा उसी में से एक बहुत बड़ी चट्टान जो मंदिर के आगे आकर मंदिर का कवच बन गई और इसी चट्टान की वजह से मंदिर के एक ईट को भी नुकसान नहीं पहुंचा जब से इस चट्टान को भीम शिला का नाम दिया गया ।
यह मंदिर आम दर्शनार्थियों के लिए सुबह 6:00 बजे खुलता है और दोपहर में 3:00 से 5:00 तक यहां पर विशेष पूजा होती है और उसके बाद विश्राम के लिए मंदिर बंद कर दिया जाता है शाम को 5:00 बजे भक्तों के दर्शन के लिए यह मंदिर खोला जाता है भगवान शिव की प्रतिमा का सिंगार करने के बाद प्रतिदिन 7:30 से लेकर 8:30 तक यहां पर आरती की जाती है रात में 8:30 बजे के बाद केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग का मंदिर बंद कर दिया जाता है।
केदारनाथ के लिए रास्ता
सड़क मार्ग :-
तापमान :-
हम भी एक रोज तेरे दर आयेंगे केदारनाथ सुना है यहा हवा स्वर्ग से आती है
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