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केदारनाथ - जहाँ हवा स्वर्ग से आती है | उत्तराखण्ड

*वर्ष 2020 जो की कोरोना वर्ष बन गया है इस वर्ष सभी जगह अप्रैल माह में संपूर्ण लॉकडाउन  किया गया था |अथवा इस वक्त भी सावधानी बरतते हुए कई जगह लॉकडाउन अभी भी लगा हुआ है | क्योंकि कोरोना से सावधानी सबसे अहम है 

यही अगर बात करे केदारनाथ की -------

  केदारनाथ जो की पंच केदारो में से एक है, 

 वह उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में है  यह चार धाम एवं पंच केदारो में से एक है पंच केदार में केदारनाथ, रुद्रनाथ, कल्पेश्वर, मध्य ईश्वर एवं तुंगनाथ आते हैं केदारनाथ यात्रा 29 अप्रैल 2020 सुबह 6:10 पर सभी विधि विधान के साथ खोल दी गई थी ,परंतु यात्रियों के लिए 14 मई 2020 को केदारनाथ के कपाट खोले गए यह कपाट 16 नवंबर 2020 तक खोले गए हैं हिंदू धर्म के अनुसार शिव भगवान ने प्रकृति के कल्याण हेतु भारतवर्ष में 12 जगहों पर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए उन 12 जगह स्थित शिवलिंग को ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजा जाता है, जिनमें से 1 ज्योतिर्लिंग केदारनाथ भी है | केदारनाथ धाम में हर साल लाखों की संख्या में  श्रद्धालु आते हैं, किंतु इस वर्ष कोरोना महामारी के चलते हुए श्रद्धालु की संख्या काफी कम है, परंतु केदारनाथ के प्रति लोगों की अटूट श्रद्धा और विश्वास कम नहीं है || केदारनाथ मंदिर तीन तरफ से ऊंचे ऊंचे पहाड़ों से घिरा हुआ है जिनकी औसत ऊंचाई 22000 फ़ीट है एक तरफ 22090 फीट ऊंचा केदारनाथ पर्वत है तो दूसरी ओर 21700 फीट ऊंचा पहाड़ तथा तीसरी तरफ है 22000 फीट ऊंचा भरतकुंड ना सिर्फ तीन पर्वत अथवा मंदाकिनी नदी भी इस इलाके से बहती है  मंदाकिनी नदी का उद्गम स्थान चोराबाड़ी ग्लेशियर का कुंड है मंदाकिनी नदी के पास ही केदारनाथ का निर्माण कराया गया :

मान्यता :

केदारनाथ को लेकर लोगों की अलग-अलग मान्यता 

1. यह भी कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण पांडवों के समय हुआ था है केदारनाथ मंदिर को  लेकर कहा जाता है कि महाभारत का युद्ध को जीतने के बाद पांडवों को परिवार हत्या का श्राप मिला था जिसकी वजह से पांडव उस पाप से मुक्त होने के लिए शिव भगवान शिव का आशीर्वाद पाने के लिए भगवान शिव को ढूंढने के लिए निकल पड़े भगवान शिव का दर्शन करने के लिए पांडव काशी गए किंतु वहां उन्हें शक नहीं मिले पांडवों को भगवान शिव को ढूंढते हुए केदारनाथ जा पहुंचे किंतु भगवान शिव पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे पर के पांडव श्रद्धा के पक्के थे पांडवों ने भगवान शिव को जो कि बैलों के झुंड में बैलों का रूप लिए हुए छुपे हुए थे पांडवों ने उन्हें ढूंढ लिया तभी भीम ने अपना विशालतम रूप धारण किया और दोनों पहाड़ों पर अपने पैर रख दिए यह सब देखकर सभी गाय बैल जमीन मे  समा गये किन्तु भगवान शिव  जमीन के नीचे नही समाय भीम ने अपने बल से एक बैल को पकड़ा लेकिन जो की भगवान शिव थे  फिर धरती में समाने लगे तब बैल की पीठ का भाग पकड़ लिया भगवान शंकर  भक्ति और सङ्कल्प और श्रधा से बहुत प्रसन्न हुए है उन्होने उसी समय दर्शन देकर पांडवों को पाप से मुक्त कर दिया और उसी समय से भगवान शंकर पांडवों की भक्ति, श्रद्धा  और संकल्प से बहुत प्रसन्न हुए है उन्होंने उसी समय दर्शन देकर पांडवो को पाप से मुक्त किया उसी समय से भगवान शिव बैल की आकृति में श्री केदारनाथ में पहुंच जाते है

2. एक प्रचलित मान्यता है  अनुसार मंदिर के स्थापना जगतगुरू आदि शंकराचार्य ने आठवीं शताब्दी में करी थी l मंदिर के पिछले भाग में जगतगुरु आदि शंकराचार्य की समाधि भी स्थित है

3. ऐसा भी मन जाता है भगवान शिव केदार के ऊपर का भाग काठमांडू में प्रकट हुआ अब वहां पर पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है शिव की भुजाएं तुंगनाथ में मुख रुद्रनाथ में नाभि मधेश्वरण और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुई इसीलिए इन चार स्थानों से श्री केदारनाथ को पंच केदार कहा जाता है केदारनाथ मंदिर मंदिर के कपाट भैया दूज के दिन सुबह सभी विधि विधान के साथ ही कपाट बंद कर दिए जाते हैं ।

प्रमुख घटना

वर्ष 2013 में उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में अचानक बाढ़ गई थी, जिस वजह से भूस्खलन होने लगा जिसे सबसे ज्यादा अधिक प्रभावित केदारनाथ धाम हुआ। यह आपदा इतनी भयंकर थी कि इसके आसपास के सभी इलाके क्षतिग्रत हो गये लेकिन केदारनाथ मंदिर सुरक्षित और उसी भव्यता से अपनी स्थान पर स्थापित रहा । आज भी लोग इसे एक चमत्कार से कम नहीं मानते, बाढ़ और भूस्खलन के बाद बड़ी-बड़ी चट्टानें मंदिर के पास आकर रुक गई तथा उसी में से एक बहुत बड़ी चट्टान जो मंदिर के आगे आकर मंदिर का कवच बन गई और इसी चट्टान की वजह से मंदिर के एक ईट को भी नुकसान नहीं पहुंचा जब से इस चट्टान को भीम शिला का नाम दिया गया 

यह मंदिर आम दर्शनार्थियों के लिए सुबह 6:00 बजे खुलता है और दोपहर में 3:00 से 5:00 तक यहां पर विशेष पूजा होती है और उसके बाद विश्राम के लिए मंदिर बंद कर दिया जाता है शाम को 5:00 बजे भक्तों के दर्शन के लिए यह मंदिर खोला जाता है भगवान शिव की प्रतिमा का सिंगार करने के बाद प्रतिदिन 7:30 से लेकर 8:30 तक यहां पर आरती की जाती है रात में 8:30 बजे के बाद केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग का मंदिर बंद कर दिया जाता है।


केदारनाथ के लिए रास्ता


सड़क मार्ग :-


 दिल्ली से केदारनाथ 455 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है तथा यहां पहुंचने में 9 से 11 घंटे लगते हैं ,राष्ट्रीय मार्ग-58 दिल्ली को केदारनाथ से जोड़ता है
. दिल्ली से हरिद्वार 206 किलोमीटर
. हरिद्वार से देवप्रयाग 100 किलोमीटर
. देवप्रयाग से रुद्रप्रयाग 68 किलोमीटर
. रुद्रप्रयाग से गौरीकुंड 75 किलोमीटर

गौरीकुंड से केदारनाथ मंदिर 14 किलोमीटर गौरीकुंड से केदारनाथ तक का रास्ता बिना किसी मोटर गाड़ी के तय करना पड़ता है गौरीकुंड से अधिकतर लोग पैदल ही केदारनाथ की चढ़ाई करते हैं घोड़े पर बैठकर भी केदारनाथ तक जाया जा सकता है जिसके लिए आपको अलग से पैसा देना होता है ।

रेलवे मार्ग :

 दिल्ली से रेलगाड़ी में आप ऋषिकेश रेलवे स्टेशन तक की आ सकते हैं केदारनाथ के सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है जोकि केदारनाथ से 215 किलोमीटर की दूरी पर है ।

* यदि आप केदारनाथ आने का विचार कर रहे हैं तो सड़क का रास्ता सबसे बेहतर है ।

* केदारनाथ में रुकने के लिए आपको धर्मशाला व स्मॉल कॉटेजेस कम दामों पर मिल जाते हैं ।



* केदारनाथ के समीप दर्शनीय स्थल :-

. चंद्रपुरी

अनुसूया देवी मंदिर

. गांधी सरोवर

. वासुकी ताल

. काली मठ

चौपटा

देवरिया ताल


तापमान :-


. केदारनाथ में गर्मियों में तापमान औसतन 10 से 15 डिग्री सेल्सियस रहता है (मई-जून) ।

. सर्दियों में यहां का तापमान औसतन -10 से 8 डिग्री तक रहता है (अक्टूबर - दिसंबर) ।

. मानसून के महीने में यहां का तापमान औसतन 6 डिग्री से 11 डिग्री सेल्सियस रहता है इसी समय सबसे ज्यादा भूस्खलन होते हैं ( अगस्त - सितंबर) ।

* केदारनाथ आने का सबसे सही समय मई से जुलाई ।


हम भी एक रोज तेरे दर आयेंगे  केदारनाथ सुना है यहा हवा स्वर्ग से आती है

                                                       🙏🙏 जय बाबा केदारनाथ 🙏🙏



COVID-19 ADVISORY

*2020 कोरोना की महामारी के वर्ष में भी केदारनाथ के कपाट खोल दिए गए है कोरोना से सुरक्षा के इन्तेज़ाम भी उत्तराखण्ड सरकार ने किये हुए है किन्तु फिर भी आप अगर इस वर्ष में केदारनाथ की यात्रा के लिए जाना चाहते है तो कोरोना से सावधानी जरूर बरते 

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